विषय सूची
गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
सत्रहवाँ अध्याय
विधिहीनमस्रष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् । व्याख्या- इन यज्ञों में कर्ता, ज्ञान, क्रिया, धृति, बुद्धि, संग, शास्त्र, खान-पान आदि यदि सात्त्विक होंगे तो वह यज्ञ सात्त्विक हो जायगा, यदि राजस होंगे तो वह यज्ञ राजस हो जायगा, और यदि तामस होंगे तो वह तामस हो जायगा। देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् । व्याख्या- शारीरिक तप में ‘त्याग’ मुख्य है; जैसे- पूजन में अपने में बड़प्पन के भाव का त्याग है, शुद्धि रखने में आलस्य-प्रमाद का त्याग है, सरलता रखने में अभिमान का त्याग है, ब्रह्मचर्य में विषय-सुख का त्याग है, अहिंसा में अपने सुख के भाव का त्याग है। इस प्रकार त्याग मुख्य होने से शारीरिक तप होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज