गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 324

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥14॥

वह शत्रु तो हमारे द्वारा माया गया और उन दूसरे शत्रुओं को भी हम मार डालेंगे। हम ईश्वर (सर्वसमर्थ) हैं। हम भोग भोगने वाले हैं। हम सिद्ध हैं। हम बड़े बलवान और सुखी हैं।

आढयोऽभिजनवानस्मि कोडन्योऽस्ति सदृशो मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥15॥

हम धनवान हैं, बहुत-से मनुष्य हमारे पास हैं, हमारे समान दूसरा कौन है? हम खूब यज्ञ करेंगे, दान देंगे और मौज करेंगे- इस तरह वे अज्ञान से मोहित रहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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