गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 320

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् ।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥8॥
 
वे कहा करते हैं कि संसार असत्य, बिना मर्यादा के और बिना ईश्वर के अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से पैदा हुआ है। इसलिये काम ही इसका कारण है, इसके सिवाय और क्या कारण है? (और कारण हो ही नहीं सकता।)

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय: ।
प्रभवन्त्युग्रकर्माण:क्षयाय जगतोऽहिता: ॥9॥

इस (पूर्वाक्त नास्तिक) दृष्टि का आश्रय लेने वाले जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूप को नहीं मानते, जिनकी बुद्धि तुच्छ है, जो उग्र कर्म करने वाले और संसार के शत्रु हैं, उन मनुष्यों की सामर्थ्य का उपयोग जगत् का नाश करने के लिये ही होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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