गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 316

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता ।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥3॥

तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर-भाव का न होना और मान को न चाहना; हे भरतवंशी अर्जुन! ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ॥4॥

हे पृथानन्दन! दम्भ करना, घमण्ड करना और अभिमान करना, क्रोध करना तथा कठोरता रखना और अविवेक का होना भी-ये सभी आसुरी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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