गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 286

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

चौदहवाँ अध्याय

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सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥11॥

जब इस मनुष्य शरीर में सब द्वारों (इन्द्रियों और अन्तःकरण)- में प्रकाश (स्वच्छता) और विवेक प्रकट हो जाता है, तब यह जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है।

व्याख्या- प्रकाश’ और ‘ज्ञान’-दोनों में भेद है। ‘प्रकाश’ का अर्थ है- इन्द्रियों और अन्तःकरण में जागृति अर्थात रजोगुण से होने वाला मनोराज्य तथा तमोगुण से होने वाले निद्रा, आलस्य और प्रमाद न हो कर स्वच्छता होना। ‘ज्ञान’ का अर्थ है- विवेक अर्थात सत-असत, कर्तव्य-अकर्तव्य आदि का ज्ञान होना। प्रकाश और ज्ञान ओन पर साधक उनको अपना गुण मान कर अभिमान न करे, प्रत्युत उनको सत्त्वगुण का ही कार्य माने और विशेष रूप से भजन-ध्यान आदि में लग जाय। कारण कि ऐसे समय में किये गये साधन से अधिक लाभ हो सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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