गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 410

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-4
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
Prev.png

कंस के छोटे भाई कंक और न्यग्रोध आदि ने कृष्ण-बलराज पर आक्रमण किया किन्तु यह भी मार दिए गए। इनको मारकर कृष्ण-बलराम ने अपने माता-पिता वसुदेव-देवकी को व नाना उग्रसेन को बन्धन मुक्त किया तथा उग्रसेन को मथुरा के राज्य सिंहासन पर अभिषिक्त कर अक्रूर आदि यदुवंशियों की नियुक्ति विशेष पदो पर की। मगध का राजा जरासंध कंस का श्वसुर था। कंस-वध का समाचार सुनकर जरासंध ने तेईस अक्षौहिणी सेना से मथुरा को घेर लिया लेकिन कृष्ण-बलराम से वह पराजित हुआ। जरासन्ध ने सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किए और प्रत्येक बार वह पराजित हुआ। अठारहवीं बार जिस समय जरासन्ध ने मथुरा पर आक्रमण किया उसी समय कालयवन नाम के म्लेच्छ ने भी तीन करोड़ सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण कर दिया। कालयवन को देख भगवान कृष्ण उस गुफा में गए जहाँ कालयवन का काल इक्ष्वाकु महाराज मान्धाता का पुत्र “मुचुकुन्द” सो रहा था। कालयवन की ठोकर से मुचुकुन्द की आँखें खुली और कालयवन पर दृष्टि पड़ी तो दृष्टि पड़ते ही कालयवन जलकर भस्म हो गया। इस प्रकार कालयवन का खात्मा कर कृष्ण और बलराम प्रवर्षण पर्वत पर चले गए। जरासन्ध ने प्रवर्षण पर्वत के चारों ओर आग लगा दी किन्तु कृष्ण और बलराम बचकर द्वारका पहुँच गए।

इसके पश्चात् बलराम का विवाह इक्ष्वाकु वंश के “रैवत” नाम के राजा की कन्या “रेवती” से हुआ और विदर्भ राज भीष्म की कन्या रुक्मिणी का भगवान् कृष्ण से। विदर्भ राज भीष्म ने रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश, और रुक्ममाली नाम के पाँच पुत्र भी थे। भीष्म का बड़ा पुत्र रुक्मी, रुक्मिणी का विवाह चेदिनरेश दमघोष के पुत्र शिशुपाल से करना चाहता था और कुण्डिनपुर में विवाह की तैयारी हो रही थी। शिशुपाल, शाल्व, जरासंध, दन्तवक्र, विदूरथ, पौण्ड्रक आदि मित्रों की सेनाओं सहित आया था। रुक्मिणी ने अपने पुरोहित द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना सन्देश भेजा, रुक्मिणी का सन्देश पाते ही श्रीकृष्ण व बलराम यदुवंशीय सेना सहित कुण्डिनपुर को रवाना हो गए। विवाह के दिन रुक्मिणी पार्वती का पूजन करने नगर के बाहर निकली, संध्या का समय था। जब रुक्मिणी पार्वती का पूजन कर अपने रथ में बैठने को थी उसी समय श्रीकृष्ण रुक्मिणी को अपने रथ में बैठाकर द्वारकापुरी को चल दिए। रुक्मी के साथ जरासंध आदि समस्त राजाओं ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। बलराम ने जरासंध आदि की सेनाओं का संहार किया, श्रीकृष्ण ने रुक्मी को अपने रथ में बाँध दिया और उसके सिर को मूँडकर उसे छोड़ दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः