गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
ज्ञान-कर्म-संन्यास योग
कुम्भकर्ण वध के पश्चात् दूसरे दिन मेघनाद ने भयंकर संग्राम किया। हनुमान, अंगद, नल, नील, लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण आदि समस्त योद्धा उससे व्याकुल हो गए इन सबाके आहत कर मेघनाद भगवान राम से युद्ध करने लगा और उसने राम को नागपाश से बाँध दिया, तब जामवन्त ने उसे पकड़कर लंका में फैंक दिया, मेघनाद मूर्च्छित दशा में रावण के सम्मुख जा गिरा। मूर्च्छा से सचेत होने पर मेघनाद ने राम-लक्ष्मण को पराजित करने के लिए यज्ञ किया। इस यज्ञ की सूचना विभीषण ने राम को दी कि यदि मेघनाद का यज्ञ पूरा हो गया तो वह अजेय हो जावेगा इसलिए इसके यज्ञ को पूरा न होने दिया जावे। मेघनाद के इस यज्ञ को भंग करने के लिए लक्ष्मण नियुक्त किए गए। लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवन्त और विभीषण के साथ सेना सहित मेघनाद की यज्ञशाला में गए लक्ष्मण ने उसके यज्ञ को विध्वंस कर डाला, और मेघनाद के हृदय में बाण मारकर उसका वध कर दिया। इस प्रकार रावण के अत्यन्त पराक्रमी पुत्र मेघनाद का भी वध हो गया। भगवान राम के साथ युद्ध करने में जब निशाचर रावण के पुत्र, पौत्र, भाई, बन्धु आदि बड़े-बड़े वीर योद्धा मारे गए तब रावण स्वयं संग्राम भूमि में आकर युद्ध करने लगा। रावण का संग्राम श्रीराम से हुआ और अन्त में भगवान राम के बाणों से रावण भी मारा गया। विभीषण ने रावण की मृत देह को घृणा की दृष्टि से देखा तो श्रीराम ने विभीषण को कहा कि- “मरणान्तानि वैराणि निर्वृत्तं नः प्रयोजनम्। “वैर या वैर-भाव मरने तक ही रहता है, मरने पर उसका अन्त हो जाता है। हमारा प्रयोजन पूरा हो चुका है। अब यह रावण जैसे तुम्हारा भाई है वैसे ही मेरा भी भाई है; अतः इसका दाह-संस्कार यथाविधि करना चाहिए।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकी रामायण
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