श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
इस काव्य में 5 सर्ग है। आरंभ में वृन्दावन का सुन्दर वर्णन मिलता है। [1] इसके बाद श्रीराधा का मान-वर्णन, दूती का वृषभानुपुर गमन, वृषभानुपुर का विस्तृत वर्णन, मान मोचन के निमित्त सखी की अनुनय-विनय और अन्त में श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन है। पंचम सर्ग में एक ही अक्षर से निर्मित पांच श्लोक हैं।[2] इस ग्रन्थ पर अनन्त भट्ट की सुन्दर टीका प्राप्त है। 4. आशाशत स्तव-उपसुधानिधि की भाँति यह भी स्रोत काव्य है, किंतु उससे अधिक प्रौढ़ और सरस है। इसमें श्रीराधा के रूप-माधुर्य का बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है।[3] श्री वृन्दावनदास गोस्वामीः-यह श्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी के पुत्र थे और अपने पिता के समान ही कवि हृदय, विद्वान और अनुभवी महात्मा थे। इनका एक ही ग्रन्थ अध्वविनिर्णय प्राप्त होता है, जिसमें केवल 51 श्लोक हैं। यह प्रकाशित हो चुका है। अध्वविनिर्णय में गोस्वामी जी ने अपने एक अन्य ग्रन्थ 'सेवा विवेक' [4] का उल्लेख किया है, किंतु वह अब नहीं मिलता। हित मालिका नामक एक अन्य ग्रन्थ भी इनका रचा बताया जाता है, किन्तु वह जिस रूप में प्राप्त है उसको प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भूतं यत्र प्रगट परमानंद संपन्न रूपं, मायाभंग भ्रमित मतिभिन्नैव बद्धं यथावत। वृन्दारण्यं परमकुतकं स्थावरं जंगमं च, तन्मारीच प्रकर रुचिरं प्रेम संपत्ततोपि।। (सग 1-3)
- ↑ यांयां ययौ य या यं यं याये याया ययायियः। येया येया यया यां यां यायि यायि ययौ ययिः।।(सर्ग 5-5)
- ↑ अमित कनक चन्द्र ज्योति रास्यं सुहास्यं, मधुर-मधुर लास्यं वश्य कृष्णालि रस्यं। ब्रजयुवति नमस्यं प्रेम बीथी रहस्यं,भवतु परमुपास्यं धाम राधानिधानः।।
- ↑ ग्रन्थे सेवा विवेकाख्ये विशिष्य लिखितो मया।परिचर्या प्रकारस्तु गुरुचर्या समानुगः।। (अ. वि. 26)
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