श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
ब्रजभाषा-गद्य
6. प्रेमदास जी कृत हित चतुरासी की गद्य टीका का उल्लेख भी पीछे हो चुका हैं। यह टीका सं. 1791 में पूर्ण हुई है। इसमें, प्रेमदास जी ने प्रत्येक पद के साथ एक ‘आभास’ लगाया है जिसमें कुंजों का वर्णन, श्याम-श्यामा के रूपों का वर्णन ओर पद से संबंधित विभिन्न रस-स्थितियों का वर्णन किया है। स्वभावत: इनका गद्य काव्यमय और प्रौढ़ है और उसमें उत्प्रेक्षाओं और रूप को की भरमार हैं। श्रीराधा के रूप का एक वर्णन देखिये; - ‘श्री लाड़िलीजू कैसी हैं? जिनके अंगनि की छवि आगैं औंट्यौं कंचन प्रतीत भाग है। महा मनोहर तनसुख की तनसुख सारी झमकि रही है। तामें कंचन के फूल झिलमिलाई रहे हैं। जिनकौ मुख मंद मुसिकानि सहित डहडहाइ रह्यौ है। तापर घुंघर वारी अलकैं छटि रही हैं और नेत्रनि में सहज ही कटाक्ष की चितवनि हैं। जो सुवर्ण को कमल होइ अरु नवीन मकंरद कों श्रवत होइ, फिर सौन्दर्यता कौ धाम हू होइ, तामें मत्त खंजन को जोरा खेलत होइ अरु मनोहर भ्रमरनि की माला सौं व्याप्त होइ, फिर कोटि-कोटि चन्द्रमनि की सौ प्रकास हू होय, तऊ कुंवरि जू के मुख के दास कों न दीजिये।’ 7. श्री हित रूपलाल गोस्वामी रचित कई छोटे-बडे़ ग्रन्थ व्रज भाषा गद्य में मिलते हैं जिन मे से निम्न लिखित लेखक ने देखे हैं। (1.) ‘सर्व शास्त्र सिद्धान्त भाषा,’ इसका नाम ‘गुणभेद भाव-भक्ति-विवेक रत्नावली’ भी दिया हुआ है। यह उक्त गोस्वामी जी का सबसे बड़ा गद्य ग्रन्थ हैं। इस में भक्ति के भेदों की व्याख्या, प्रेम के पात्रों का वर्णन तथा भाव और रस का सुन्दर विवेचन किया गया हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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