हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 177

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
उपासना-मार्ग


सारा सार विवेकिनी बुद्धि के द्वारा ही इस रस का ग्रहण संभव है। यहीं बुद्धि सब प्रकार से निर्भय बनकर वृन्दावन रसरीति का अनुसरण करती है। सेवक जी ने अपना उदाहरण देकर समझाया है, ‘जितने भी साधन हैं वे सब सकाम मति से प्रेरित होने के कारण स्वार्थमय एवं अनीति पूर्ण हैं। ज्ञान, ध्यान, व्रतकर्म आदि पर मुझको विश्वास नहीं होता। रसिक अनन्यों ने तो दुंदुभी बजा कर एक मात्र श्याम-श्यामा की प्रीति का आश्रय लिया है। श्री हरिवंश के चरण कमलों के एकान्त सेवक रसरीति को छोड़ कर कभी विचलित नहीं होते हैं।’

साधन विविध सकाम मति सब, स्वारथ सकल सबै जुअनीति।
ज्ञान, ध्यान, व्रत, कर्म जिते सब काहू में नाहिं मोहि प्रतीति।।
रसिक अनन्य निसान बजायौ एक श्याम श्यामा पद प्रीति।
श्री हरिवंश चरण निज सेवक बिचलै नाहिं छाँडि रस रीति।।[1]

सखी गण की प्रेम-पद्धति के अनुकरण पर, जिस प्रकार इस संप्रदाय में प्रेमी की उपासना का विधान किया गया है, उसी प्रकार यहाँ का उपासना मार्ग भी सखीगण की सहज प्रेमोपासना का अनुसरण करता है। हम देख चुके हैं कि सखियों के जीवन का एक मात्र उद्देश्य युगल की परिचर्या करना है और इसके साथ वे सहज रूप से श्याम-श्यामा के नाम-रूप का गान करती रहती हैं। उनकी इन प्रवृतियों के अनुकरण पर संप्रदाय के उपासना-मार्ग के तीन अंग रखे गये हैं परिचर्या, नाम-स्मरण और वाणी-अनुशीलन। हम इन तीनों को क्रमशः उपस्थित करेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 13-1

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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