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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनदूसरे दिन प्रात:काल सब लोग शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म के पास आये। सबके बैठ जाने पर भीष्म ने अपने पीने के लिये जल माँगा। उसी समय राजा लोग अनेकों प्रकार का उत्तम भोजन और जल ले आये। भीष्म ने यह देखकर कहा कि 'मैं अब इस शरशय्या पर लेटा हुआ हूँ सही; परंतु मर्त्यलोक में नहीं हूँ। अब इस लोक का सुन्दर भोजन और जल नहीं ग्रहण करना चाहिये।' इतना कहकर भीष्म ने अर्जुन का स्मरण किया। अर्जुन ने पितामह के पास जाकर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर नम्रता से कहा- 'पूजनीय पितामह! मैं आपकी क्या सेवा करूँ?' भीष्म ने पराक्रमी अर्जुन का अभिनन्दन करके प्रसन्नतापूर्वक कहा- 'बेटा! तुम्हारे बाणों की जलन से मेरा शरीर जल रहा है, मुँह सूख रहा है और मर्मस्थलों में व्यथा हो रही है। मुझे प्यास लग रही है, इसलिये तुम जल देकर मेरी प्यास बुझाओ। तुम्हारे सिवा मुझे और कोई जल पिलाने वाला नहीं दीखता। भीष्म की आज्ञा पाकर अर्जुन ने अपने धनुष पर डोरी चढ़ायी, वज्र की कड़क के समान उसकी आवाज सुनकर बड़े-बड़े वीर डर गये। धनुष पर बाण चढ़ाकर अर्जुन ने पितामह की प्रदक्षिणा की और पर्जन्य-अस्त्र का प्रयोग करके पितामह की दाहिनी बगल में पृथ्वी पर वह बाण मारा। पृथ्वी फट गयी और उस स्थान से सुगन्धपूर्ण, अमृततुल्य, मधुर, निर्मल शीतल जल की धार ऊपर निकली। वह जल पीकर महात्मा भीष्म बहुत प्रसन्न और तृप्त हुए। राजा लोग विस्मित हो गये, कौरव लोग डर के मारे सिकुड़ गये। भीष्म ने सब राजाओं के सामने अर्जुन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा-'बेटा अर्जुन! तुमने आज जो काम कर दिखाया वह तुम्हारे लिये कुछ अद्भभुत नहीं है। नारद ने मुझसे कहा था कि तुम पुरातन ऋषि नर हो। सब देवताओं की सहायता से इन्द्र भी वह काम नहीं कर सकते, जो तुम अकेले कर सकते हो। पुरुषोत्त्म श्रीकृष्ण तुम्हारे सहायक हैं। पृथ्वी पर तुम्हारे-जैसा धनुर्धारी और कोई नहीं है। हम लोगों ने दुष्ट दुर्योधन को बहुत समझाया, परंतु वह किसी भी बात नहीं मानता; वह भीमसेन के बल से बहुत ही शीघ्र नष्ट हो जायेगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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