भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 77

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

भीष्म के गिरते ही युद्ध बंद हो गया। उनके पास सभी वीर इकट्ठे हो गये। द्रोणाचार्य तो यह समाचार सुनकर मूर्छित ही हो गये। उनके होश में आने पर सब-के-सब वीर भीष्म पितामह के पा उपस्थित हुए। भीष्म ने सबसे स्नेह के साथ कहा-'वीरो! मैं तुम लोगों का स्वागत करता हूँ, तुम्हें देखकर प्रसन्न हो रहा हूँ।' भीष्म का सिर नीचे लटक रहा था। उन्होंने सबका स्वागत-सत्कार करने के बाद कहा-'राजाओ। मेरा सिर बहुत नीचे लटक रहा है, मुझे तकिये की आवश्यकता है। राजालोग और कौरवगण उसी समय बढ़िया, कोमल और मूल्यवान तकिये लेकर दौड़े आये। परंतु भीष्म ने उन्हें स्वीकार न करके कहा-'ये तकिये वीरशय्या के योग्य नहीं हैं। अर्जुन की ओर देखकर उन्होंने कहा- 'वीर अर्जुन! तुम इस वीरशय्या के योग्य जो तकिया समझते हो वही तकिया मुझे दो।' अर्जुन ने गाण्डीव धनुष चढ़ाकर उनकी आज्ञा ली और तीन बाण भीष्म पितामह के मस्तक में मारे। उससे उनका सिर ऊपर ठहर गया। उन्होंने अर्जुन से कहा-'तुम बड़े बुद्धिमान हो। यदि तुम ऐसी तकिया नहीं देते तो मैं तुम पर कुपित हो जाता और शाप दे देता। धार्मिक क्षत्रियों के लिये ऐसी ही शय्या और ऐसा ही तकिया चाहिये।

पितामह ने राजाओं से कहा-'मुझे अब योग्य तकिया मिल गया। सूर्य के उत्तरायण होने तक मैं इसी शय्या पर लेटा रहूँगा। तुम लोग इसके चारों ओर खाई खोद दो। मैं इसी शय्या पर पड़ा-पड़ा भगवान् का स्मरण करूँगा। मेरा एक अनुरोध और भी है, यदि किसी प्रकार युद्ध बंद हो सके तो कर दो।' उसी समय दुर्योधन की आज्ञा से बहुत-से शल्य-चिकित्सा में निपुण सुशिक्षित वैद्य मरहम पट्टी का सामान लेकर भीष्म पितामह के पास आये। भीष्म ने उन्हें देखकर दुर्योधन से कहा-'इन्हें जो कुछ देना है देकर सत्कार के साथ विदा कर दो। मैंने उत्तम गति प्राप्त कर ली है, वैद्यों की क्या आवश्यकता है। मैं शरशय्या पर पड़ा हूँ। अब आरोग्य होने की इच्छा करना उचित नहीं है। इन बाणों की चिता में ही मुझे भस्म करना।' दुर्योधन ने वैद्यों को विदा कर दिया। भीष्म की धर्मनिष्ठा और धर्मानुकूल मृत्यु देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गये। सबने उन्हें प्रणाम किया और उनकी परिक्रमा की और अनेकों रक्षक नियुक्त करके सब लोग अपने-अपने शिविर में चले गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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