भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 76

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

भीष्म यही सब सोच रहे थे। उस समय आकाश में स्थित ऋषियों और वसुओं ने भीष्म को सम्बोधन करके कहा-'भीष्म! तुम्हारा सोचना बहुत ठीक है; यदि तुम अपना, हमारा और सारे जगत् का हित करना चाहते हो तो अब लड़ना बंद कर दो। तुमने अपने कर्तव्य के सम्बन्ध में ठीक ही सोचा है। तुम्हें मर्त्यलोक में बहुत दिन हो गये, अब हम लोगों के लोक में आओ।' ऋषियों और वसुओं के मुँह से यह बात निकलते ही शीतल-मन्द-सुगन्ध हवा चलने लगी, देवलोक में नगाड़े बजने लगे और देवता भीष्म पर आकाश से पुष्पवर्षा करने लगे। वह आकाशवाणी भीष्म और संजय के अतिरिक्त और किसी ने नहीं सुनी।

भीष्म ने देवताओं और ऋषियों का अभिप्राय जानकर अर्जुन के बाणों से पीड़ित होते रहने पर भी शस्त्र-प्रहार का परित्याग कर दिया। शिखण्डी ने भीष्म के वक्ष:स्थल पर नौ बाण मारे, परंतु उनसे वे विचलित नहीं हुए। इसके पश्चात अर्जुन और शिखण्डी ने भीष्म पर बहुत-से बाण चलाये, उनका सारा शरीर बाणों से छिद गया। भीष्म के शरीर में दो अंगुल भी ऐसी जगह नहीं थी, जहाँ अर्जुन के बाण न घुस गये हों। दसवें दिन के युद्ध में सूर्यास्त के कुछ पहले महात्मा भीष्म रथ से नीचे गिर पड़े। आकाश में देवता और पृथ्वी में सब राजा हाहाकार करने लगे। उस समय पृथ्वी कांप उठी और अन्तरिक्ष में घोर शब्द होने लगा। उनके शरीर में इतने बाण घुसे हुए थे कि उनका शरीर पृथ्वी पर न जा सका, बाणों की ही शय्या लग गयी। सिर नीचे लटक गया। उस समय अन्तरिक्ष से यह आवाज आयी कि महात्मा भीष्म ने दक्षिणायन मे शरीर-त्याग कैसे किया? भीष्म सचेत हो गये। उन्होंने कहा- 'मैं अभी जीवित हूँ' सब लोगों ने प्रसन्नता प्रकट की।

हिमवान् की पुत्री भीष्म की माता गंगा ने भीष्म की इच्छा जानकर महर्षियों को हंस के रुप में उनके पास भेजा। भीष्म के पास जाकर उन्होंने उनकी प्रदक्षिणा की। उन्होंने आपस में बात की कि भीष्म ने दक्षिणायन में प्राण-त्याग कैसे किया? भीष्म ने उनसे कहा कि 'मैं दक्षिणायन भर जीवित रहूँगा, सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने धाम जाऊँगा। पिता के कृपा प्रसाद से मुझे मृत्यु पर आधिपत्य प्राप्त है, मैं जब चाहूँ तभी मर सकता हूँ।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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