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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनभीष्म पितामह की बात सुनकर दुर्योधन उदास हो गया। भीष्म ने कहा- 'दुर्योधन! यह क्रोध करने का समय नहीं है। अर्जुन ने मुझे जिस प्रकार जल पिलाया, तुमने अपनी आँखों से उसे देखा है। कौन है पृथ्वी पर ऐसा काम करने वाला वीर? श्रीकृष्ण और अर्जुन के अतिरिक्त सम्पूर्ण दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता और कौन है? उन्हें कोई नहीं जीत सकता। उनसे मेल करने में ही तुम्हारी और सारे जगत की भलाई है। जब तक तुम्हारे प्रिय परिजन जीवित हैं, तभी तक सन्धि कर लेना उत्तम है। अर्जुन ने जो कुछ किया है वह तुम्हारी सावधानी के लिये पर्याप्त है। मेरी मृत्यु ही इस हत्याकाण्ड का अन्त हो। पाण्डवों को आधा राज्य दे दो। बैर भूलकर सब लोग प्रेम से गले मिलो। तुम लोग इस समय जिस मार्ग से चल रहे हो, वह सर्वनाश का मार्ग है।' भीष्म इतना कहकर चुप हो गये। सब लोग उनसे अनुमति लेकर अपने-अपने स्थान पर चले गये। जब सब लोग चले गये, तब भीष्म पितामह के पास कर्ण आया। कर्ण की आँखों में आँसू भर आये। उसने गद्गद स्वर से कहा-'पितामह! मैं राधा का पुत्र कर्ण हूँ। मेरे निरपराध होने पर भी आप मुझसे लाग-डांट रखा करते थे।' भीष्म ने कर्ण की बात सुनकर धीरे-धीरे आँख खोलीं। वहाँ से रक्षकों को हटा दिया और एक हाथ से पकड़कर उसे अपने हृदय से लगा लिया। उन्होंने कहा-'प्यारे कर्ण! आओ, आओ तुमने इस समय मेरे पास आकर बड़ा उत्तम कार्य किया है। वीर! मुझसे देवर्षि नारद और महर्षि व्यास ने कहा है कि तुम राधा के पुत्र नहीं, कुन्ती के पुत्र हो। तुम्हारे पिता अधिरथ नहीं हैं, साक्षात् भगवान् सूर्य हैं। मैं सत्य-सत्य कहता हूँ; मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति तनिक भी द्वेषभाव नहीं है। मैंने जान-बूझकर तुम्हारे प्रति कटु वचनों का प्रयोग इसलिये किया है कि तुम्हारा तेज घटे। संसार में तुम्हारे समान पराक्रमी बहुत ही कम हैं। तुम ब्रह्मनिष्ठ, शूर और श्रेष्ठ दानी हो। तुम्हारे उत्कर्ष से कौरवों का घमण्ड और बढ़ेगा तथा वे पाण्डवों से अधिकाधिक द्वेष करेंगे इसीलिये मैं तुम्हारा अपमान किया करता था। मगधराज जरासन्ध भी तुम्हारे सामने नहीं ठहर सकते थे। इस समय यदि तुम मुझे प्रसन्न करना चाहते हो तो एक काम करो। तुम पाण्डवों से मिल जाओ। फिर युद्ध बंद हो जायेगा, मेरी मृत्यु से ही यह बैर की आग बुझ जायेगी और प्रजा में शान्ति का विस्तार होगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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