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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यनसत्यवती ने व्यास का स्मरण किया और वे माता के स्मरण करते ही ब्रह्मसूत्रों की रचना छोड़कर वहाँ आ गये। माता ने अपने प्यारे पुत्र को बहुत दिनों के बाद पाकर मारे प्रेम के हृदय से लगा लिया। स्नेह के मारे उनके स्तनों से दूध की धार निकल पड़ी, आँसू बहने लगे। व्यास ने अपनी माता को प्रणाम करके उनसे अपने योग्य सेवा की आज्ञा माँगी। सत्यवती ने उनसे आग्रह किया कि वे लुप्त होते हुऐ भरत वंश की रक्षा करें। व्यासजी ने कहा- 'यदि तुम्हारी बहुएँ मेरे बूढ़े और विकृत देह हो देखकर घृणा न करें, मेरे शरीर से निकलती हुई गन्ध को सह लें, मेरे रुप से देखकर डरें नहीं, तो उन्हें गर्भ रह जायेगा। उनसे कह दो कि वे नग्न होकर मेरी आँखों के सामने से निकल जायें। बस, वे मेरी दृष्टि से ही गर्भवती हो जायेंगी।' सत्यवती ने अम्बिका को जाकर समझाया और किसी प्रकार डांट-डपटकर उसे इस बात पर राजी किया कि वह वस्त्ररहित होकर व्यासजी के सामने से निकल जाये; परंतु उसका हृदय यह बात स्वीकार नहीं कर रहा था। वह बड़े संकोच से अपनी आँख बन्द करके उनके सामने गयीं। व्यास की कृपा दृष्टि से उसे गर्भ रह गया। जब माता ने व्यास से पूछा, तब उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर कह दिया कि यह आँख बन्द करके मेरे सामने गयी थी, इसलिये इसका पुत्र अंधा होगा: परंतु उसके सौ पुत्र होंगे। माता ने प्रार्थना की, एक पुत्र और उत्पन्न करो बेटा क्योंकि अंधा तो राजा हो ही नहीं सकता। अम्बालिका के ऋतुधर्म होने पर फिर व्यासदेव आये। सत्यवती की प्रेरणा से उनके सामने आँख खोले हुए गयी तो अवश्य, परंतु मारे डर के उसका शरीर पीला पड़ गया। व्यास ने कहा-' तुम मुझे देखकर मारे डर के पीली पड़ गय; इसलिये तुम्हारे गर्भ से जो पुत्र होगा वह पाण्डुवर्ण का होगा।' माता को जब यह समाचार मालूम हुआ, तब उन्होंने व्यास से पुन: प्रार्थना की कि 'तुम एक पुत्र और उत्पन्न करो।' व्यासदेव ने इस बार भी स्वीकार कर लिया। कुछ समय बीतने पर अम्बिका ने पुन: ऋतुस्नान किया और सत्यवती ने व्यासदेव का स्मरण कर उन्हें बुलाया। इस बार भी अम्बिका की हिम्मत उनके सामने जाने की नहीं पड़ी। उसने अपनी एक सर्वांगसुन्दरी दासी उनके सामने भेज दी। व्यासदेव उसके आचरण से बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने वर दिया कि आज से तुम दासभाव से छूट जाओगी। तुम्हारा बालक संसार में परम धार्मिक और बड़ा बुद्धिमान होगा। व्यासजी महाराज चले गये। अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु और दासी के गर्भ से विदुर का जन्म हुआ। महात्मा भीष्म बड़े प्रेम से भगवत्-भजन करते हुए इनका पालन-पोषण करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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