भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 26

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन

मुझे पता है कि तुमने मेरे ही लिये प्रतिज्ञा की थी, किंतु अब इस कुल का लोप न हो, ऐसा तुम्हें करना चाहिये।' भीष्म ने कहा-'माता' तुम धर्म को देखो, कुल के मोह में पड़कर मुझे अधर्म के मार्ग में मत चलाओ। सत्य सब धर्मों से बढ़कर है, इतने उत्तम वंश में पैदा होकर मैं सत्य कैसे छोडूँ।' इतना कहकर भीष्म ने सत्यवती को समझाया कि तुम किसी धर्मात्मा तपस्वी ब्राहम्ण की शरण लो। उसके कृपा-प्रसाद से वंश की रक्षा हो जायेगी।

भीष्म की बात सुनकर सत्यवती कुछ विचार में पड़ गयी। अन्त में कुछ लज्जित भाव से सिर नीचा करके धीमे स्वर से बोली-'बेटा! भीष्म! तुमसे कोई बात छिपी तो है नहीं, इसलिये मैं बतलाती हूँ। मैं दाशराज की कन्या हूँ, मैं उपरिचर वसु की पुत्री हूँ। मछली के गर्भ से मेरा जन्म हुआ और मेरे पिता ने मुझे दाशराज को दे दिया। वे बड़े धर्मात्मा थे। उन्होंने यमुना में एक नाव छोड़ रखी थी, मैं उसी नाव पर रहती। जो कोई यात्री आता उसे बिना पैसा-कौड़ी लिये नदी से पार उतार दिया करती थी। यह काम करते-करते मैं जवान हो गयी। एक दिन महर्षि पराशर उसी रास्ते आये, उनकी कृपादृष्टि मुझ पर पड़ गयी। बेटा! ऐसा नहीं समझना कि महर्षि पराशर के मान में कोई दूषित भाव आया: क्योंकि वे बड़े पुण्यात्मा महर्षि हैं। कभी-कभी लोगों की दृष्टि में कुछ बुरा काम होने पर भी वासनारहित होने के कारण वह जगत् के लिये परम मंगलस्वरुप हो जाता है। जब उन्होंने मुझसे अपनी इच्छा प्रकट की, तब मैं अपने पिता और धर्म से डर गयी: परंतु उनके शाप से भी कम भय नहीं हुआ। उनके वर देने पर मैंने उनकी बात मान ली और उनके वीर्य से मेरे गर्भ से व्यासदेव उत्पन्न हुए। ऋषि ने मुझे वर दे दिया कि इससे तुम्हारा कन्याभाव दूषित नहीं होगा। मेरा पुत्र व्यास बड़ा ही तपस्वी और धर्मात्मा है, यदि तुम्हारी अनुमति हो तो मैं उसे बुलाऊँ और उसी से वंश-रक्षा का काम कराया जाय।' भीष्म ने अनुमति दे दी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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