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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
पितामह का उपदेशएक दिन वह वन में घूम रहा था कि बड़े जोर से आँधी और बिजली चमकने लगी। पानी से पृथ्वी भर गयी, पशु-पक्षियों के लिये भी कहीं आश्रय नहीं था। वह बहेलिया स्वयं भी जाड़े के मारे ठिठुर रहा था। न उसे ठहरने को कोई स्थान मिल रहा था और न उसमें कहीं जाने की शक्ति ही थी। उसी समय जाड़े से व्याकुल एक कबूतरी उसे दीख पड़ी। वह बहेलिया स्वयं तो दु:खी था ही, परंतु उस अवस्था में भी उसने कबूतरी को पकड़ ही लिया। उस कबूतरी को पिंजरे में बंद कर दिया। स्वयं दु:खी होने पर भी उसे कबूतरी को दु:ख देने में संकोच नहीं हुआ। उसी समय बहेलिये ने एक पेड़ देखा, बड़ा सुन्दर पेड़ था। मानो ब्रह्मा ने परोपकार करने के लिये ही उसकी सृष्टि की हो। आकाश निर्मल हो गया, नक्षत्र दिखायी देने लगे। बहेलिया ने आकर उसी पेड़ की शरण ली। वह पत्ते बिछाकर एक पत्थर पर सिर रखकर लेट गया। वह वृक्ष कबूतरी का निवास स्थान था। उसका पति कबूतर उसी पर रहता था। समय पर कबूतरी के न आने से वह बड़ा विलाप कर रहा था। अपने पति का विलाप सुनकर कबूतरी को बड़ा दु:ख हुआ, साथ ही अपने सौभाग्य का गर्व भी। वह सोचने लगी, मेरे पति मुझसे इतना प्रसन्न रहते हैं तो इससे बढ़कर मेरे लिये और प्रसन्नता की बात क्या होगी? उसने पिंजरे के अंदर से ही अपने पति को पुकारकर कहा- 'स्वामी! इस समय तुम्हारे हित की बात यही है कि इस भूखे-प्यासे और जाड़े से ठिठुरते हुए बहेलिये की रक्षा और सत्कार करो। यह तुम्हारे घर आया है न, हम पक्षी होने के कारण निर्बल अवश्य हैं, परंतु तुम्हारे जैसे आत्मतत्व के ज्ञाता को शरणागत प्राणी की रक्षा करनी ही चाहिये। मेेरे बदले में तुम्हें दूसरी स्त्री मिल सकती है, परंतु इस प्रकार अतिथि-सत्कार का अवसर प्राप्त होगा या नहीं, इसमें संदेह है।' अपनी स्त्री के वचन सुनकर कबूतर को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह आदर के साथ बहेलिये से कहने लगा-'भाई साहब! आप अपने ही घर में हैं, कोई चिन्ता न करें। आप मेरे अतिथि हैं, आपकी सेवा मेरा कर्तव्य है।' वृक्ष अपने काटने वाले को भी छाया देता है। घर आने पर अपने शत्रु का भी सत्कार करना चाहिये। आप इस समय क्या चाहते हैं। मैं यथाशक्ति आपकी इच्छा पूरी करूँगा।' बहेलिये ने कहा-'इस समय तो मैं जाड़े से ठिठुर रहा हूँ, ठंड से बचने का कोई उपाय करो।' कबूतर ने सूखे पत्ते इकट्ठे किये। लुहार के यहाँ से आग लाकर जला दिया। बहेलिया आग तापने लगा। उसका जाड़ा छूट गया। अब वह कबूतर की ओर देखकर बोला कि 'मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को चाहिये।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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