भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 103

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग

मैं आपके उसी रुप का प्रेमी हूँ। मुझे एक क्षण के लिये भी वह न भूले। आपकी ललित गति, चित्त को चंचल कर देने वाली चेष्टाएँ, मन्द-मन्द मधुर मुस्कान, प्रेम भरी चितवन आदि से गोपियाँ आकर्षित हो गयीं वे अपने सौभाग्य पर इतराने लगीं। आप भी तो अद्भभुत खिलाड़ी हैं, आप छिप गये। वे विरह से निहाल हो गयीं और क्या करतीं, आपकी ही लीला का अनुकरण करने लगीं। अपने को भूल गयीं, तन्मय हो गयीं। आप उनकी तन्मयता में, उनके विरह-संगीत में और उनकी प्रेम-पीड़ा में प्रकट हुए। आप इसी प्रकार प्रकट होते हैं, इसी से तो मैं आपके चरणों में न्यौछावर हो गया हूँ।

'श्रीकृष्ण! युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, वह मुझे कभी नहीं भूल सकता। मेरी आँखों के सामने की बात है। ऋषियों, मुनियों और देवताओं के बीच में आप सर्वोच्च सिंहासन पर बैठे हुए थे। पाण्डवों ने आपकी पूजा की। मुझे कितना आनन्द हुआ। आज मैं आपको देख रहा हूँ, मृत्यु के समय मैं आपको देख रहा हूँ। अहोभाग्य! सचमुच मेरे अहोभाग्य हैं। मैं कृतार्थ हो गया। मैंने मोह का परित्याग किया, मेरा अज्ञान नष्ट हो गया। मेरी आँखों के सामने से अंधेरा हट गया। मैं देख रहा हूँ कि जैसे सूर्य अनेक पात्रों में रखे हुए पानी में अनेकों रुप से प्रतिबिम्बित होता है, परंतु वास्तव में एक ही है, वैसे ही आप एक हैं और प्रत्येक शरीर में भिन्न-भिन्न रुपों से प्रतीत होते हैं। वास्तव में आप अजन्मा हैं, वे विभिन्न पात्र और उनमें रखा हुआ पानी भी नहीं है, केवल आप हैं। मैंने अभेदभाव से, अद्वैतभाव से आपके प्राप्त किया। मै। आपमें मिल गया, मैं आपसे एक हो गया।'

इतना कहकर भीष्म चुप हो गये। देवता उनके शरीर पर पुष्पवर्षा करने लगे। ऋषि-मुनि उनकी स्तुति करने लगे। लोगों ने बड़े आश्चर्य के साथ देखा की भीष्म के शरीर का प्राण ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ता है, त्यों-त्यों उनके शरीर से बाण निकलते जाते हैं और घाव भरता जाता है। औरों की तो बात ही क्या स्वयं श्रीकृष्ण, व्यास और युधिष्ठिर आश्चर्यचकित हो गये। भीष्म भगवान् से एक हो गये। भगवान् में मिल गये। आकाश में जय-जयकार के नारे लगने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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