भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 102

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग

'श्रीकृष्ण! आप आनन्दस्वरुप हैं। जब आप माया को स्वीकार करते हैं, तब यह सृष्टि की धारा बहती है। मैंने अपनी निष्काम बुद्धि आपको अर्पण कर दी है। श्रीकृष्ण! कितना सुन्दर है आपका शरीर, तमाल-वृक्ष के समान श्यामल वर्ण मैं अपनी आँखों से देख रहा हूँ। सूर्य-किरणों के समान चमकता हुआ पीताम्बर आपके कंधों पर पर फहरा रहा है। आपके मरकतमणि के समान स्निग्ध कपोलों पर घुंघराले बाल लटक रहे हैं। आपके मुखकमल की कोमलता प्रत्यक्ष हो रही है। अर्जुन के मित्र श्रीकृष्ण! आपमें मेरा सच्चा प्रेम हो। हाँ, आप अर्जुन के मित्र हैं। मुझे स्मरण है उस समय का दृश्य, जब आपके काले-काले बालों पर घोड़ों की टाप से उड़ी हुई धूल पड़ी हुई थी। आपके मुँह पर पसीने के बिन्दु झलक रहे थे। मैंने अपने बाणों से आपका कवच काट डाला, आपका चमड़ा मेरे बाणों से छिन्न-भिन्न होने लगा। हाँ, वह रुप मुझे नहीं भूलता, मेरा मन उसी में रम जाये। अर्जुन ने कहा- मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो। अर्जुन के अच्छे सारथि! भला आप देर कब करते, तुरंत दोनों सेनाओं के बीच में रथ ले गये। अर्जुन की बुरी हालत थी, वह कांपने लगा। अरे, इन गुरुजनों को कैसे मारुं? गुरुओं के गुरु श्रीकृष्ण! आपके सामने उसकी यह दुर्बलता कब तक ठहरती? आपने अपने उपदेशों से उसकी कुमति नष्ट कर दी। आपके चरणों में मेरी प्रीति बनी रहे। श्रीकृष्ण! मैं आपसे क्या कहूँ? आपने प्रतिज्ञा की कि मैं शस्त्र ग्रहण नहीं करूँगा। मैंने प्रतिज्ञा की कि आपको शस्त्र ग्रहण कराऊँगा। भक्त के सामने भगवान् की प्रतिज्ञा कैसे रहती। आपने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और मेरी प्रतिज्ञा सत्य की। मुझे खूब स्मरण है, जब आप रथ का पहिया हाथ में लेकर मेरी ओर दौड़ रहे थे। उस समय पृथ्वी कांपने लगी, कंधे पर से आपका दुपट्टा गिर पड़ा। बस, मुझे उसी रुप का स्मरण हुआ करे। मैंने भी अपनी ओर से कुछ कोर-कसर नहीं की। तीखे बाणों से आपका कवच काट डाला। आपके शरीर में इतने बाण लगे कि वह खून से लथपथ हो गया। ऐसी अवस्था में आप मुझे मारने के लिये दौड़े आर रहे थे, मेरी आँखों ने देखा। मेरा मन आपके उसी रुप पर मुग्ध हो गया और वह रुप मेरे हृदय में बस गया। आप अर्जुन के रथ पर बैठे हुए थे। एक हाथ में चाबुक था और दूसरे हाथ में घोड़ें की रास थी। महाभारत के युद्ध में मरने वाले आपके उस रुप को देखते थे और आपके अन्दर समाते जाते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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