भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 101

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग

भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण से कहा-'प्रभो! तुम सम्पूर्ण देवताओं के एकमात्र अधिपति पुरुषोत्तम हो, मैं सच्चे हृदय से तुम्हें नमस्कार करता हूँ। एकमात्र तुम्हीं मेरे रक्षक हो। मैंने तुम्हारे स्वरुप को पहचाना है। अब मुझे आज्ञा दो कि मैं शरीर-त्याग करुं।' भगवान् श्रीकृष्ण ने आज्ञा दे दी। भीष्म पितामह ने अपनी इन्द्रियों, मनोवृत्तियों और बुद्धि को समेटकर भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति प्रारम्भ की। उस समय अनेकों ऋषि-महर्षि उन्हें घेरकर बैठै हुए थे।

उन्होंने कहा- 'श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम! आप परम ब्रह्म हैं। बड़े-बड़े देवता और ऋषि आपके तत्व को नहीं जानते। यह सारा संसार आप में स्थित है। सारे वेद और उपनिषद् आपकी महिमा का बखान करते हैं, आप बड़े ही भक्तवत्सल हैं। आपका नाम लेकर लोग संसार में त्राण पाते हैं। वेदों की रक्षा के लिये ही आप अवतीर्ण हुए हैं। वास्तविक ज्ञान होने पर मनुष्य अपने आत्मा के रुप में आपको पहचान लेता है। आप ही उपासना करने योग्य हैं, आप ही शरण लेने योग्य हैं। आप भक्तवाच्छा-कल्पतरु हैं, आप संसार की निधि हैं, आप सत्-असत् से परे एकाक्षर ब्रह्म और परम सत्य हैं। आप अनादि और अनन्त हैं। सब प्राणी आप में ही रम रहे हैं, न जानने के कारण दु:खी-सुखी होते रहते हैं। आपको जान लेने पर मृत्यु का भय नहीं रहता। आपने ही पृथ्वी को धारण कर रखा है। आप ही शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं। आप सत्यस्वरुप हैं, आप धर्मस्वरुप हैं, आप कालस्वरुप हैं, आप क्षेत्रस्वरुप हैं। आप ही सांख्य योग और मोक्ष स्वरुप हैं। प्रभो! आपके चरणों में बार-बार नमस्कार करता हूँ। 'भगवन्! आप ही कार्य हैं और आप ही कारण। आप ही घोर हैं और आप ही अघोर। आप ही काल, दिक् और वस्तु के रुप में प्रकट हो रहे हैं। आप ही लोक हैं और आप ही अलोक। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। आपका शरीर पांचभौतिक नहीं है, आप सर्वस्वरुप हैं, सर्व हैं। आप काल से परे हैं, आपका शरीर अलसी के पुष्प के समान साँवला है। पीताम्बर फहरा रहा है। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। जो आपको प्रणाम करता है, वह सम्पूर्ण भयों से मुक्त हो जाता है। जीव के जीवन में सबसे आवश्यक वस्तु आपका नाम है। जिसने आपके नाम का आश्रय ले लिया वह सब बन्धनों से छूट गया। सब दु:खों से मुक्त हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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