संक्षिप्त कृष्णलीला पृ. 3

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शिशु-लीला

शिशु-लीला

कारागार-रक्षकों से देवकी के आठवाँ पुत्र उत्पन्न होने का समाचार सुनकर हड़बड़ाया कंस दौड़कर वहाँ पहुँचा। माता देवकी ने बिलखकर कहा-‘भइया! यह तो लड़की है, आप-जैसे योद्धा का भला क्या बिगाड़ सकेगी? इसे तो मुझसे मत छीनो!!’ किंतु आततायी कंस भला क्यों मानता? उसने देवकी की गोद से उस नन्हीं कन्या को झपट लिया। वह उसे घुमाकर पटकना ही चाहता था कि कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गयी। वस्तुतः भगवान् की योगमाया ही थी वह। चतुर्भुज रूप से आकाश में प्रकट होकर उसने कहा-‘अरे दुष्ट! तुझे मारने वाला कहीं और उत्पन्न हो गया है।’ लज्जित कंस ने वसुदेव-देवकी से क्षमा माँग कर उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया, किंतु साथ ही उसने अपने सेवकों को आदेश दे दिया कि वे उसके राज्य में उत्पन्न सारे नवजात शिशुओं को ढूँढ़कर मार डालें।

इधर गोकुल में नन्द बाबा के यहाँ शिशुरूप भगवान् की लीला प्रारम्भ हो गयी थी। नन्द बाबा गोपों के मुखिया थे। अतः उनके यहाँ शिशु उत्पन्न होने का उत्सव सारा गोकुल मना रहा था। वह दिव्य शिशु था भी ऐसा। जो कोई उसे देखता उसी का हो जाता। उसके साँवले-सलोने अनुपम रूप की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी थी। कंस और उसके सेवक भी यह समाचार सुन चुके थे।

फिर क्या था! कंस के दुष्ट सेवक गोकुल की ओर आने लगे-इस दुराशा में कि वे नन्द बाबा के उस अनुपम शिशु को मारकर कंस द्वारा पुरस्कृत होंगे। सबसे पहले विषयुक्त स्तनों वाली पूतना आयी और प्रभु को स्तन पान कराने लगी। प्रभु ने स्तनपान करते-करते उसके प्राण पी लिये। तदनन्तर कौवे का रूप धारण कर कंस का एक अन्य दुष्ट सेवक आया। शिशु रूप श्रीकृष्ण पालने में लेटकर अकेले किलकारियाँ भर रहे थे। काकासुर अपनी चोंच से उन पर प्रहार करना ही चाहता था कि प्रभु ने उसका गला पकड़ लिया और इस तरह उछाला कि वह सीधे कंस के आगे जा गिरा। इसी प्रकार शकटासुर और तृणावर्त आदि कंस के अनेक दुष्ट अनुचरों का शिशुरूप में ही प्रभु ने उद्धार कर दिया।

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