संक्षिप्त कृष्णलीला पृ. 1

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देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुति

देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुति

जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म की सत्ता प्रतिष्ठित होने लगती है; तब-तब साधुजनों की रक्षा, दुष्टों के समूल विनाश तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिये भगवान् विविध रूपों में अवतरित हुआ करते हैं।

द्वापर-युग की बात है। मथुरा में उग्रसेन नाम के राजा हुए। वे स्वयं तो अत्यन्त न्यायप्रिय और प्रजा-वत्सल थे, किंतु उन्हीं का पुत्र कंस बड़ा ही क्रूर, निर्दयी और अत्याचारी निकला। उसके भय से धरती त्राहि-त्राहि कर उठी। कंस के ही समान अन्य अनेक आतताइयों का बोझ धरती के लिये और भी दुःसह हो गया था। गौका रूप धारण कर वह देवताओं के साथ भगवान् की शरण में पहुँची। दीन-वत्सल भगवान् ने धरती को दुष्टों के बोझ के मुक्त करने के लिये अवतार लेने का निर्णय लिया।

कंस को अपनी चचेरी बहिन देवकी से स्नेह था। देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ। कंस स्वंय देवकी-वसुदेव को रथ में बैठाकर पहुँचाने ले चला। रास्ते में ही वह था कि आकाशवाणी हुई-‘मूर्ख कंस! इस देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।’ यह सुनकर कंस देवकी को मारने के लिये उद्यत हो गया। वसुदेव ने समझाया-‘तुम्हारा शत्रु देवकी नहीं, उससे उत्पन्न पुत्र ही तो होगें। मैं इसके सभी पुत्र तुम्हें सौंप दिया करूँगा।’ कंस मान गया। किंतु वसुदवे-देवकी को उसने वापस लाकर कारागार में डाल दिया।

देवकी के क्रमशः छः पुत्रों को आततायी कंस ने मार डाला। सातवें गर्भ के रूप में अनन्त भगवान् (शेष जी)-को आना था। परमात्मप्रभु की इच्छा से योगमाया ने देवकी के उस गर्भ का संकर्षण कर उसे वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के उदर में स्थापित कर दिया, जो कंस के ही भय से गोकुल में नन्द जी के यहाँ रहती थीं। अब आठवें गर्भ के रूप में देवकी ने साक्षात् परमपिता को धारण किया। देवता लोग अपने-अपने लोकों से आकर गर्भवास कर रहे परमात्मप्रभु की स्तुति करने लगे।

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