श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 251

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अष्टम अध्याय

धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।।25॥
धूम, रात्रि, कृष्णपक्ष, छह मासरूप दक्षिणायनकाल-इनके देवताओं के मार्ग में गमन करने वाले कर्मयोगियों का चंद्रज्योतिस्वरूप स्वर्गलोक को प्राप्त कर उपभोग करने के उपरांत पुन: संसार में आगमन होता है।

भावानुवाद- अब कर्मिगण को आवृत्ति मार्ग के विषय में बता रहे हैं। धूम, रात्रि इत्यादि शब्दों से पूर्व की भाँति उस उसके अभिमानी देवता को लक्ष्य कर रहे हैं। इन समस्त देवताओं के द्वारा उपलक्षित मार्ग में गमनशील कर्मयोगी चन्द्रमा रूप ज्योति से लक्षित स्वर्ग लोक को प्राप्त कर वहाँ कर्म फल का भोग करते हैं तथा कर्म फल के समाप्न होने पर संसार में पुनरावर्तन करते हैं।।25।।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति-

धूम, रात्रि, कृष्ण पक्षा, दक्षिणायन रूप छह मास और चन्द्र ज्योतिः अर्थात् उस-उस अभिमानी देवता या इन्द्रिय क्रिया द्वारा कर्म योगि गण पुनरावृत्ति मार्ग को प्राप्त होते हैं।।25।।

शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्त्तते पुनः।।26॥
कृष्ण और शुक्ल- जगत के ये दो मार्ग ही सनातन स्वीकार किये हैं। एक के द्वारा मोक्ष प्राप्त होता है तथा दूसरे के द्वारा संसार में पुनरावर्तन होता है।

भावानुवाद- अब श्री भगवान् पूर्व कथित दोनों मार्गों का उपसंहार कर रहे हैं - शाश्वत अर्थात् अनादि संसार में दो सनातन मार्ग हैं - प्रथम शुक्ल पक्षीय मार्ग द्वारा मोक्ष तथा द्वितीय कृष्ण पक्षीय मार्ग द्वारा संसार में पुनर्जन्म होता है।।26।।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति-

पूर्वोक्त अर्चिरादि मार्ग अर्थात् ‘देवयान’ ज्ञान प्रकाशक होने के कारण शुक्ला गति के नाम से भी प्रसिद्ध है एवं धूम आदि मार्ग ‘पितृयान’ अन्धकार मय, तमोमय होने के कारण कृष्ण गति के नाम से प्रसिद्ध है। ये दोनों गतियाँ अनादि काल से ही इस जगत् में प्रवर्त्तित हैं। ब्रह्मविद् योगी शुक्ला गति का अवलम्बन कर देवयान में अर्चिरादि लोकों से होकर क्रमपथ से मोक्ष लाभ करते हैं, किन्तु इष्टपूर्त्तादि अनुष्ठानों को करने वाले योगी कृष्ण गति का अवलम्बन कर पितृयान से धूमादि देवताओं का अनुवर्त्तनकर चन्द्र लोक में ज्योति स्वरूप सुख भोग कर अन्त में पुनः संसार में प्रत्यावर्त्तन करते हैं।

देवयान तथा पितृयान के विषय में विशेष रूप से छान्दोग्य उपनिषद में वर्णन किया गया है।।26।।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501

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