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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
13. अलौकिक प्रेम
उस समय कुछ गोपियों को उनके पति, पुत्र आदि ने अथवा पिता, भाई आदि ने घर में ही बन्द कर दिया, जिससे उनको घर से निकलने में मार्ग नहीं मिला। मार्ग न मिलने पर उन गोपियों की क्या दशा हुई- इस विषय में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं- दुःसहप्रेष्ठाविरहतीव्रतापधुताशुभाः। ‘उन गोपियों के हृदय में अपने परम प्रियतम श्रीकृष्ण के असह्य विरह का जो तीव्र ताप हुआ, उससे उनका अशुभ जल गया और ध्यान में आये हुए श्रीकृष्ण का आलिंगन करने से जो सुख हुआ, उससे उनका मंगल नष्ट हो गया।’ ‘यद्यपि उन गोपियों की श्रीकृष्ण में जारबुद्धि थी, फिर भी एकमात्र परमात्मा (श्रीकृष्ण)-के साथ सम्बन्ध होने से उनके सम्पूर्ण बन्धन तत्काल एवं सर्वथा नष्ट हो गये और उन्होंने अपने गुणमय शरीर का त्याग कर दिया।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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