मेरे तो गिरधर गोपाल -रामसुखदास पृ. 47

मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास

7. अभिमान कैसे छूटे ?

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सन्तों की वाणी में एक बड़ी विचित्र बात आयी है कि भगवान् ने संसार को मनुष्य के लिये बनाया और मनुष्य को अपने लिये बनाया। तात्पर्य है कि मनुष्य मेरी भक्ति करेगा तो संसार की सब वस्तुएँ उसको दूँगा! उसको किसी बात की कमी रहेगी ही नहीं! सदा के लिये कमी मिट जायगी! पर वह भक्ति न करके अभिमान करने लग गया। अभिमान भगवान को सुहाता नहीं-

ईश्वरस्याप्यभिमानद्वेषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च ।[1]


ईश्वर का भी अभिमान से द्वेषभाव है और दैन्य से प्रियभाव है।’

सुनहु राम कर सहज सुभाऊ। जन अभिमान न राखहिं काऊ ।।
संसृत मूल सूलप्रद नाना। सकल सोक दायक अभिमाना ।।
ताते करहिं कृपानिधि दूरी। सेवक पर ममता अति भूरी ।।[2]

भगवान् अभिमान को दूर करते हैं, पर मनुष्य फिर अभिमान कर लेता है! अभिमान करते-करते उम्र बीत जाती है! इसलिये हरदम ‘हे नाथ! हे मेरे नाथ!’ पुकारते रहो और भीतर से इस बात का खयाल रखो कि जो कुछ विशेषता आयी है, भगवान् से आयी है। यह अपने घर की नहीं है। ऐसा नहीं मानोगे तो बड़ी दुर्दशा होगी!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नारद भक्ति० 27
  2. मानस, उत्तर० 74। 3-4

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