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मेरे तो गिरधर गोपाल -स्वामी रामसुखदास
4. मानव शरीर का सदुपयोग
अर्थात् प्रकृति माता है और मैं उसमें बीज-स्थापन करने वाला पिता हूँ, जिससे सम्पूर्ण प्राणी पैदा होते हैं। अतः प्राणियों में प्रकृति का अंश भी है और परमात्मा का भी। परन्तु जो जीवात्मा है, उसमें केवल परमात्मा का ही अंश है-‘ममैवांशः’ (मम एव अंशः) । देवता, भूत-प्रेत, पिशाच आदि जितने भी शरीर हैं, उन सब में जड़ और चेतन- दोनों रहते हैं। देवताओं के शरीर में तैजस-तत्त्व की प्रधानता है, भूत-प्रेतों के शरीर में वायु-तत्त्व की प्रधानता है, मनुष्यों के शरीर में पृथ्वी-तत्त्व की प्रधानता है, आदि। भिन्न-भिन्न शरीरों में भिन्न-भिन्न तत्त्व की प्रधानता रहती है। यद्यपि सभी शरीरों में मुख्यता चेतन की ही है, पर वह शरीर में मैं-मेरापन करके उसी को मुख्य मान लेता है। जड़ शरीर की मुख्यता मानता ही जन्म-मरण का कारण है- ‘कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु’[1]। गुणों का संग होने से ही जीव की तीन गतियाँ होती हैं। जो सत्त्वगुण में स्थित होते हैं, वे ऊर्ध्वगति में जाते हैं। जो रजोगुण में स्थित होते हैं, वे मध्यलोक में जाते हैं। जो तमोगुण में स्थित होते हैं, वे अधोगति में जाते हैं- ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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