ज्ञानेश्वरी पृ. 826

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-18
मोक्ष संन्यास योग


यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥78।


ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिबत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णाजु्रनसंवादे क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगो नाम नामाष्टादशोऽध्यायः।।18।।

इस पर संजय ने कहा-“हे महाराज! यह बात मेरी समझ में बिलकुल नहीं आती कि इस युद्ध में किसकी विजय होगी, पर इतना सच अवश्य है कि यदि आयु शेष हो तो मनुष्य अवश्य जीवित रहता है। जिस जगह पर चन्द्रमा रहता है, उस जगह पर चाँदनी की उपस्थिति अवश्य रहती है; जिस जगह पर शंकर निवास करते हैं, उस जगह पर पार्वती भी अवश्य रहती हैं; जिस जगह पर सन्त रहते हैं, उस जगह पर विवेक रहता-ही-रहता है। जिस जगह पर राजा होगा वहाँ सेना भी होगी; जहाँ सुजनता विद्यमान होगी, उस जगह परी मित्रता भी होगी और जिस जगह पर आग उपस्थित होगी, उस जगह पर दाहक-शक्ति भी अवश्य ही रहेगी। जिस जगह पर दया विद्यमान होगी उस जगह पर धर्म भी डेरा डाले रहेगा और जिस जगह पर धर्म उपस्थित होगा, उस जगह पर सुखोपलब्धि भी अवश्य ही होगी। जिस जगह पर सुख विद्यमान होगा, उस जगह पर पुरुषोत्तम विद्यमान ही रहेंगे। जिस जगह पर वसन्त होगा, उस जगह पर वन भी होगा, जिस जगह पर वन होगा उस जगह पर पुष्प होंगे-ही-होंगे। जिस जगह पर पुष्प होंगे, उस जगह पर भ्रमर-समूह अवश्य ही मँडरायेंगे। जिस जगह पर गुरु निवास करते हैं, उस जगह पर ज्ञान का वास होता है; जिस जगह पर ज्ञान का वास होता है, उस जगह पर आत्म-दर्शन भी होता है और जिस जगह पर आत्म-दर्शन होता है, उस जगह पर समाधान भी होता ही है। सौभाग्य के पास विलास, सुख के पास उल्लास तथा सूर्य के पास प्रकाश अवश्य ही देखने में आता है। इसी प्रकार समस्त पुरुषार्थों को सामर्थ्य अथवा शोभा जिनके कारण मिलती है, वे भगवान् श्रीकृष्ण जिस तरफ उपस्थित रहेंगे, लक्ष्मी भी उसी तरफ रहेंगी; और अपने स्वामी सहित वह जगदम्बा लक्ष्मी जिसे प्राप्त होगी, क्या अणिमा इत्यादि अष्टसिद्धियाँ उसकी सेविका नहीं हो जायँगी?

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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