ज्ञानेश्वरी पृ. 601

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-15
पुरुषोत्तम योग


इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत।।20।।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे पुरुषोत्तम योगो नाम पंचदशोऽध्यायः।।15।।

इस प्रकार इस अध्याय के आरम्भ से लेकर यहाँ तक समस्त शास्त्रसमस्त महत्तत्त्व प्रतिपादित किया गया है, जो कमल-सौरभ की भाँति उपनिषदों को सुगन्धित करता है तथा जो शब्द-ब्रह्म के (मथने से) उपलब्ध होने वाला अर्थ-सर्वस्व है, वह श्रीव्यास जी की प्रज्ञाबल से निकाला हुआ सार मैंने आप लोगों की सेवा में प्रस्तुत किया है। यह ज्ञानामृत की गंगा है अथवा आनन्दरूपी चन्द्रमा की सत्रहवीं कला है अथवा विचाररूपी क्षीरसिन्धु से प्रकट हुई नव लक्ष्मी ही है। यही कारण है कि वह अपने पद (शब्द समूह), वर्ण (अक्षर) तथा अर्थरूपी जीवन-प्राण से मेरे अलावा और कुछ जानती ही नहीं। इसके समक्ष क्षर और अक्षर- ये दोनों ही करबद्ध उपस्थित रहते हैं, पर यह भूलकर भी उनकी ओर नहीं देखती तथा उसने अपना सब कुछ मुझ पुरुषोत्तम को ही समर्पित कर दिया है। इसीलिये इस जगत् में यह गीता मेरी आत्मा की एकनिष्ठ पतिव्रता है और उसी का श्रवण आज तुमने किया है। वास्तव में यह शास्त्र वर्णनातीत है, पर इस संसार पर विजय-पताका फैलाने वाला यही एक शस्त्र है। जिन मन्त्राक्षरों से आत्मा का स्फुरण होता है, वे इसी गीता के हैं। पर हे अर्जुन! आज जो मैंने तुमको इस शास्त्र के सम्बन्ध में बतलाया है, सो यह कृत्य कैसा हुआ है? आज मैं मानो अपने गुप्त धन का भण्डार ही तुम्हारे सामने खोल कर रख दिया हूँ। चैतन्यरूपी शंकर के मस्तक पर जो गीतारूपी गंगा मैंने छिपा रखी थी, हे धनंजय! उसे आस्थापूर्वक बाहर निकालने वाले तुम आज दूसरे गौतम हुए हो।

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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