श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-10
विभूति योग
हे देव! आपकी विभूतियाँ तो सभी हैं, पर आप मुझे अपनी वह विभूति बतलावें, जो अपनी दिव्य शक्ति से सर्वत्र व्याप्त हो रही है। अपनी जिन विभूतियों से आपने इस अनन्त लोक को व्याप्त कर रखा है, उनमें से प्रमुख विभूतियों के नाम आप कृपाकर मुझे बतलावें।[1]
हे प्रभु, मैं आपको किस प्रकार जानूँ और क्या समझकर आपका चिन्तन करूँ, यह आप मुझे कृपापूर्वक बतलावें। यदि यह कहा जाय कि यह समस्त संसार तो आज ही हैं, तो फिर चिन्तन करने के लिये कोई स्थान ही नहीं रह जाता। इसीलिये अभी आपने संक्षेप में जो अपने भाव बतलाये हैं, उनका अब थोड़ा-सा विस्तारपूर्वक वर्णन करें। आप अपने वे भाव मुझे स्पष्ट करके बतलावें, जिनके द्वारा आपका चिन्तन करना मेरे लिये दुष्कर न हो और इस प्रकार मुझे आपकी प्राप्ति सुगमता से हो जाय।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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