गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
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[[चित्र:Krishna-Leela-2.jpg|thumb|150px|देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुति]] | [[चित्र:Krishna-Leela-2.jpg|thumb|150px|देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुति]] | ||
जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म की सत्ता प्रतिष्ठित होने लगती है; तब-तब साधुजनों की रक्षा, दुष्टों के समूल विनाश तथा धर्म की पुनस्र्थापना के लिये भगवान् विविध रूपों में अवतरित हुआ करते हैं। | जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म की सत्ता प्रतिष्ठित होने लगती है; तब-तब साधुजनों की रक्षा, दुष्टों के समूल विनाश तथा धर्म की पुनस्र्थापना के लिये भगवान् विविध रूपों में अवतरित हुआ करते हैं। | ||
− | द्वापर-युग की बात है। मथुरा में उग्रसेन नाम के राजा हुए। वे स्वयं तो अत्यन्त न्यायप्रिय और प्रजा-वत्सल थे, किंतु उन्हीं का पुत्र कंस बड़ा ही क्रूर, निर्दयी और अत्याचारी निकला। उसके भय से धरती त्राहि-त्राहि कर उठी। कंस के ही समान अन्य अनेक आतताइयों का बोझ धरती के लिये और भी दुःसह हो गया था। गौका रूप धारण कर वह देवताओं के साथ भगवान् की शरण में पहुँची। दीन-वत्सल भगवान् ने धरती को दुष्टों के बोझ के मुक्त करने के लिये अवतार लेने का निर्णय लिया। | + | द्वापर-युग की बात है। [[मथुरा]] में उग्रसेन नाम के राजा हुए। वे स्वयं तो अत्यन्त न्यायप्रिय और प्रजा-वत्सल थे, किंतु उन्हीं का पुत्र कंस बड़ा ही क्रूर, निर्दयी और अत्याचारी निकला। उसके भय से धरती त्राहि-त्राहि कर उठी। कंस के ही समान अन्य अनेक आतताइयों का बोझ धरती के लिये और भी दुःसह हो गया था। गौका रूप धारण कर वह देवताओं के साथ भगवान् की शरण में पहुँची। दीन-वत्सल भगवान् ने धरती को दुष्टों के बोझ के मुक्त करने के लिये अवतार लेने का निर्णय लिया। |
− | कंस को अपनी चचेरी बहिन देवकी से स्नेह था। देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ। कंस स्वंय देवकी-वसुदेव को रथ में बैठाकर पहुँचाने ले चला। रास्ते में ही वह था कि आकाशवाणी हुई-‘मूर्ख कंस! इस देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।’ यह सुनकर कंस देवकी को मारने के लिये उद्यत हो गया। वसुदेव ने समझाया-‘तुम्हारा शत्रु देवकी नहीं, उससे उत्पन्न पुत्र ही तो होगें। मैं इसके सभी पुत्र तुम्हें सौंप दिया करूँगा।’ कंस मान गया। किंतु वसुदवे-देवकी को उसने वापस लाकर कारागार में डाल दिया। | + | [[कंस]] को अपनी चचेरी बहिन [[देवकी]] से स्नेह था। देवकी का विवाह [[वसुदेव]] से हुआ। कंस स्वंय देवकी-वसुदेव को रथ में बैठाकर पहुँचाने ले चला। रास्ते में ही वह था कि आकाशवाणी हुई-‘मूर्ख कंस! इस देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।’ यह सुनकर कंस देवकी को मारने के लिये उद्यत हो गया। वसुदेव ने समझाया-‘तुम्हारा शत्रु देवकी नहीं, उससे उत्पन्न पुत्र ही तो होगें। मैं इसके सभी पुत्र तुम्हें सौंप दिया करूँगा।’ कंस मान गया। किंतु वसुदवे-देवकी को उसने वापस लाकर कारागार में डाल दिया। |
− | देवकी के क्रमशः छः पुत्रों को आततायी कंस ने मार डाला। सातवें गर्भ के रूप में अनन्त भगवान् (शेष जी)-को आना था। परमात्मप्रभु की इच्छा से योगमाया ने देवकी के उस गर्भ का संकर्षण कर उसे वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के उदर में स्थापित कर दिया, जो कंस के ही भय से गोकुल में नन्द जी के यहाँ रहती थीं। अब आठवें गर्भ के रूप में देवकी ने साक्षात् परमपिता को धारण किया। देवता लोग अपने-अपने लोकों से आकर गर्भवास कर रहे परमात्मप्रभु की स्तुति करने लगे। | + | देवकी के क्रमशः छः पुत्रों को आततायी कंस ने मार डाला। सातवें गर्भ के रूप में अनन्त भगवान् (शेष जी)-को आना था। परमात्मप्रभु की इच्छा से [[योगमाया]] ने देवकी के उस गर्भ का [[संकर्षण]] कर उसे वसुदेव जी की दूसरी पत्नी [[रोहिणी]] के उदर में स्थापित कर दिया, जो कंस के ही भय से [[गोकुल]] में [[नन्द]] जी के यहाँ रहती थीं। अब आठवें गर्भ के रूप में देवकी ने साक्षात् परमपिता को धारण किया। देवता लोग अपने-अपने लोकों से आकर गर्भवास कर रहे परमात्मप्रभु की स्तुति करने लगे। |
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15:13, 11 मार्च 2018 का अवतरण
देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुतिजब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म की सत्ता प्रतिष्ठित होने लगती है; तब-तब साधुजनों की रक्षा, दुष्टों के समूल विनाश तथा धर्म की पुनस्र्थापना के लिये भगवान् विविध रूपों में अवतरित हुआ करते हैं। द्वापर-युग की बात है। मथुरा में उग्रसेन नाम के राजा हुए। वे स्वयं तो अत्यन्त न्यायप्रिय और प्रजा-वत्सल थे, किंतु उन्हीं का पुत्र कंस बड़ा ही क्रूर, निर्दयी और अत्याचारी निकला। उसके भय से धरती त्राहि-त्राहि कर उठी। कंस के ही समान अन्य अनेक आतताइयों का बोझ धरती के लिये और भी दुःसह हो गया था। गौका रूप धारण कर वह देवताओं के साथ भगवान् की शरण में पहुँची। दीन-वत्सल भगवान् ने धरती को दुष्टों के बोझ के मुक्त करने के लिये अवतार लेने का निर्णय लिया। कंस को अपनी चचेरी बहिन देवकी से स्नेह था। देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ। कंस स्वंय देवकी-वसुदेव को रथ में बैठाकर पहुँचाने ले चला। रास्ते में ही वह था कि आकाशवाणी हुई-‘मूर्ख कंस! इस देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।’ यह सुनकर कंस देवकी को मारने के लिये उद्यत हो गया। वसुदेव ने समझाया-‘तुम्हारा शत्रु देवकी नहीं, उससे उत्पन्न पुत्र ही तो होगें। मैं इसके सभी पुत्र तुम्हें सौंप दिया करूँगा।’ कंस मान गया। किंतु वसुदवे-देवकी को उसने वापस लाकर कारागार में डाल दिया। देवकी के क्रमशः छः पुत्रों को आततायी कंस ने मार डाला। सातवें गर्भ के रूप में अनन्त भगवान् (शेष जी)-को आना था। परमात्मप्रभु की इच्छा से योगमाया ने देवकी के उस गर्भ का संकर्षण कर उसे वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के उदर में स्थापित कर दिया, जो कंस के ही भय से गोकुल में नन्द जी के यहाँ रहती थीं। अब आठवें गर्भ के रूप में देवकी ने साक्षात् परमपिता को धारण किया। देवता लोग अपने-अपने लोकों से आकर गर्भवास कर रहे परमात्मप्रभु की स्तुति करने लगे। |
सम्बंधित लेख
संक्षिप्त कृष्णलीला
देवताओं द्वारा माता देवकी के गर्भ की स्तुति | भगवान् का प्राकट्य | शिशु-लीला | गोकुल का आनन्द | ऊखल-बन्धन | कालिय-मर्दन | गोवर्धन-धारण | मथुरा-गमन | कंस-वध | संदीपनि मुनि के आश्रम में | द्वारकाधीश श्रीकृष्ण | सुदामा का सत्कार | द्रौपदी पर कृपा | कौरव-सभा में विराट् रूप | पार्थ-सारथि श्रीकृष्ण | अर्जुन को उपदेश | परमधाम-प्रस्थान
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