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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
उनका कटि देश अति कृश है पृथु नितम्ब अत्यन्त मसृण प्रभा विस्तार कर रहे हैं, दिव्य उज्ज्वल मनोहर साड़ी धारण कर रहीं है कांचीमाला का शब्द एवं चरणों में मणि नूपुरों का सुन्दर झनकार होता है, चूड़ा एवं रत्नमय अंगदों से भूषित मृदु बाहुलताएं लालित्य समन्वित हैं।।92।।
सुचारु ग्रीवा में उज्ज्वल पदक हारावली की चमक से सुशोभित है, सुन्दर कानों में मणिमय सुन्दर बाली धारण कर रहीं है, श्रीनासापुट में मणि एवं स्वर्ण खचित एक सुन्दर मुक्ता डोलायमान है बिम्बोष्ठ तथा कृष्णवर्ण बिन्दु से सुशोभित चिबुक स्फुरित हो रही है।।93।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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