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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
प्राक्कथनसन्त भगवद्-शक्ति का ही एक स्वरूप होते हैं। सन्तों का हृदय कोमल होता है। जैसे जल का सहज स्वभाव हर-एक को शीतलता प्रदान करना होता है, वैसे ही सन्तों का सहज स्वभाव होता है- दुःखी एवं सन्तप्त जीवों पर करुणा करके उनके दुःखों को, उनके संकटों को दूर करने का मार्ग बताकर उन्हें कल्याणकारी मार्ग पर अग्रसर करना। यदि किसी जीव में यह गुण है तो वह किसी भी वेश में हो, वह सन्त है और किसी सन्त वेशधारी में यह गुण-लक्षण नहीं है, तो वह सन्त नहीं है- यह परम सत्य है। सन्त इस संसार में, इस पृथ्वी पर जीवों का कल्याण करने आते हैं और जीवन मृत्यु से परे होते हुए भी निश्चित समय पर अपने इस भौतिक शरीर का त्याग कर प्रयाण कर जाते हैं। लेकिन अमर हो जाते हैं - उनके आचरण, उनकी शिक्षा और विशेष कर उनके द्वारा साक्षात् किये गये अनुभव और उनके उपदेश, जिनका अनुसरण करके जीव मात्र अपने कल्याण का पथ प्रशस्त करता है। वेद, उपनिषद्, पुराण, महापुराण अथवा अन्य जितने भी श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत, श्री रामायण आदि ग्रन्थ आज हमारे समक्ष हैं- वे सब निश्चित ही किन्हीं न किन्हीं सन्त-महापुरुषों के वचनामृत ही हैं, जिनके द्वारा जीव मात्र का यथायोग्य कल्याण हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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