विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
श्रीगौरश्यामात्मक अति मधुर विग्रह श्रीराधा-कृष्ण के परम अनुपम प्रणय के परम पात्रस्वरूप में चित्रित एवं निर्मल काम-बीजात्मक चित्-ज्योति के समुद्र में प्रकटित उत्तमरस (मधुररस) से देदीप्यमान द्वीप-स्वरूप जो श्रीवृन्दावन है, उसमें उदित जो श्रीवृन्दावन हैं उसका भजन कर।।1।।
अहो! जो मुक्तणों को कदाचित् दर्शन नहीं देती, शुकनारदादि शुद्धभाव से अल्पमात्र भी जिसका अंग अंग प्राप्त नहीं कर पाते, श्रीकृष्ण के चरण-कमलों की वह भक्ति इस श्रीधामवृन्दावन में भावपूर्वक जिस किसी के प्रति कामुकी (इच्छावती) होकर इधर-उधर भ्रमण कर रही हैं।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज