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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
श्रीवृन्दावन में गलित-कांचन की भाँति मनोहर कांतियुक्त, कोटि चन्द्रों के समान सुन्दर मुखवाली एवं जिसकी सुन्दर-सुन्दर नीलपुष्पों द्वारा ग्रथित नवीन महावेणी के छोर पर अनेक गुच्छे लटक रहे हैं, सुन्दर नासिका के उज्ज्वल कनकमणि-खचित-एक दिव्य मुक्ता डोलायमान है, मुक्तओं की कांति को भी मन्द कर देने वाली दन्तपुक्तियुक्त सुन्दर बिम्बोष्ठी कोई एक सखी विरजमान हैं।।1।।
वह कैशोरव्यंजक मनोहर स्तनमुकुलद्वयको अपने वस्त्रांचल से ढक रहीं है, उसका मध्यदेश अतिक्षीण है, उसके अति सुन्दर कोमल कटिदेश में में सुन्दर वस्त्र शोभा दे रहा है, वह कांची, नूपुर, हारावली, वलय तथा केयूर आदि कों की शोभा से मंडिता हैं, दशों दिशाओं को आच्छादन करने वाली पूर्ण कांतियुक्त स्वर्णलतावत सुन्दर भंगीमय अंगोंयुक्त हैं।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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