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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
वे अपनी कांति से देशों दिशाओं को आच्छादन करने वाले हैं, अतुल सौंदर्य तरंगों युक्त है वैदग्धी समुद्र, अपरिसीम, भंगिमय तनुधारी हैं, श्रीराधा की अनन्या दासी उनके महान, स्नेह से विकल रहती है तथा उनकी कृपा से कलाओं के सागर को उत्तीर्ण होती हैं।।90।।
उनकी महावेणी के सिरे पर मणिगुच्छ सुशोभित हैं, आवृत स्तनमुकुलों के ऊपर तथा मस्तक पर बार-बार वस्त्र ढकती हैं, लज्जायुक्त, स्नेहयुक्त मन्द मुस्कान तथा अंगमोटन के साथ सहज कुटिल दृष्टिपात से सबको विस्मित करने वाली हैं।।91।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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