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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
त्रयोदश शतकम्
अद्भुत रसमय श्रीवृन्दावन ने जहाँ जहाँ नित्योन्मद रति केलि में असीम तृष्णाशील श्रीराधा-कृष्ण गमन करते हैं, वहाँ वहाँ भ्रमरगण शुक-पिकादि भी गान करते हैं एवं मयूर समूह नृत्य करते हुए अनुगमन करते हैं तथा वृक्षगण भी पुष्प माल्यादि की वहाँ वर्षा करते हैं।।1।।
जब तक श्रीराधा के पद नख की चन्द्रिका श्रीवृन्दावन-भूमि पर आविर्भूत नहीं होती, तब तक चित्त-चकोरी को आनन्द नहीं प्राप्त होता, और जब तक श्रीवृन्दावन-भूमि में पूर्ण निष्ठा नहीं होती, तब तक श्रीराधा चरण की कृपा भी पूर्ण रीति से उदित नहीं हो पाती।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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