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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
मुक्ता की भाँति दन्त पंक्ति से जो कांति विस्तार हो रही है मानों दशों दिशाओं में कुन्द-कुमुद फूल बिखर रहे हैं, सदा श्रीराधाजी की तीव्र प्रीति में पुलकित होती हैं अति सुन्दर स्तवक शोभित अंचल युक्त निचोलनी द्वारा सब अंगों को आवृत्त कर रहीं हैं।।94।।
सदा श्रीराधा जी की चरण सेवा में वे व्याकुल होकर इधर-उधर नूपुरों की झनकार करते हुए अति वेग से धूम रहीं हैं, अपने प्राण प्रियतम युगलकिशोर की अद्भुत सुन्दर कांति सौंदर्य की विलास तरंगों द्वारा आनन्दामृत के समुद्र प्रवाह में अतिशय निमग्न हो रही हैं।।95।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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