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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
जिन समस्त वृक्षों के नीचे श्रीराधाकृष्ण पर कौतुकवशतः क्रीड़ा करते हैं, जिनके अति रसाल-फल भोजन करते हैं, जिनके पुष्पों के भूषणादि धारण करते हैं, जिनकी शाखाओं पर बैठे हुए मौनी मनोज्ञ पक्षीगणों द्वारा किए अलापामृत एवं लावण्यामृत को पान करते हैं, मैं श्रीवृन्दावन के उन वृक्षों का ध्यान करता हूँ।।11।।
नाना आकृतिवाले नाना प्रकार के दिव्य फलों को जो श्रीराधाकृष्ण की प्रीति के लिए धारण करते हैं, एवं जो नाना प्रकार के भावों में सन्निविष्ट होकर आविर्भाव एवं तिरोभाव करते हैं, श्रीवृन्दावन के उन तरुओं को मैं नमस्कार करता हूँ।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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