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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
परम ऐश्वर्य को बिन्दुमात्र भी नहीं जानती, अन्य किसी रस से परिचित नहीं, अन्यत्र कहीं जाती नहीं- आती नहीं, किशोर अवस्था के बिना और अवस्था नहीं तथ एक क्षण भी बिना क्रीड़ा के नहीं रह सकती, ऐसी एक अनिर्वचनीय जोड़ी श्रीवृन्दावन में आनन्द ले रही है।।9।।
हाय! प्रेमानन्दरस में अति विह्वलतम् नाना चमत्कारशील दिव्य दिव्य मणिमय स्थलों से शोभित उत्तमोत्तम अनेक गुल्मद्रुमादि से भूषित, दिव्य पक्षी मृगों से संव्याप्त, सरोवरख् नदी, पर्वतादिकों से पूर्ण अद्भुत श्रीवृन्दावन में कब मैं अति ललित एकात्म श्रीयुगलकिशोर का भजन करूँगा?।।10।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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