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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पष्ठ शतकम्
श्रीराधा-कृष्ण के प्रति अनुरागवश वे (वृक्ष) मुकुलरूप से पुलकित हो रहे हैं, मकरन्द प्रवाह के मिस वे अश्रु बहा रहे हैं, मृदुमन्द वायु-प्रवाह से डोलायमान पल्लवों से मानों वे हस्त-भंगी द्वारा दिव्य नृत्य कर रहे हैं। उत्तम पुष्प-विकास छल से हंस रहे हैं, पक्षी-गणों की कोलाहल ध्वनिरूप से सम्यक् प्रकार से वे स्तव गान कर रहे हैं, फलादि के भार से झुके हुए वे श्रीवृन्दावन के वृक्षराज मेरे लिए परमानन्द प्रदान करें।।13।।
श्रीवृन्दावन के श्रेष्ठ वृक्ष श्रीराधाकृष्ण की इच्छानुकूल विग्रह-वैभव धारण कर श्रीयुगलकिशोर की अनिर्वचनीय रस-लहरी की निरन्तर वृद्धि करते हुए प्रकाशित हो रहे हैं- कभी तो वे अति दीर्घ और कभी वे अति लघुरूप धारण कर लेते हैं। अति घने हैं एवं छाया में शीतलता और उष्णता मिलती रहती हैं, छिद्र-हीन होते हुए भी बड़े कोटरवाले हैं। अत्यन्त छोटे होते हुए भी तरुण हो जाते हैं एवं सूक्ष्म होकर भी समय विशेष पर अति स्थुल हो जाते हैं।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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