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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
जिन्होंने श्री वृन्दावन भूमि को भली प्रकार प्राप्त कर लिया है, उनको सत्कर्मों के करने या न करने में कुछ भी दुखः नहीं, एवं काले सर्प से शरीर के नाश होने में भी उन्हें कुछ भय नहीं है, ब्रह्मादि से अधिक सम्पत्ति के प्राप्त होने में और परमामृत ब्रह्मानन्द की प्राप्ति में भी उनको कुछ आनन्द नहीं मिलता।।47।।
अति घोर अनर्थ करने वाली इन्द्रियों को दुष्कर तथा दुस्तर उपायों से सन्तुष्ट करने का अब कोई प्रयोजन नहीं। देहयात्रा देहयात्रा निर्वाह करने के लिए जिस किसी उपाय का अवलम्बन करके शोकातुर होते हुए एकान्त भाव से इस श्रीवृन्दावन में निवास कर।।48।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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