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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
अहो! श्रीवृन्दावन् पद-पद में ही परम उन्माद उत्पन्न करने वाले प्रेमानन्द-समुद्र को प्रवाहित कर रहा है, लक्ष्मी, शिव, ब्रह्मादि को एवं श्रीभगवान के श्रेष्ठ पार्षदों को भी लालायित कर आकुल किए रखता है, अतएव हे धीर पुरुषों! अंजलि भर पानी पीकर भी श्रीवृन्दावन में वास करो।।45।।
यदि तुमन पेट भरकर अमृत भी पान कर लिया, तो उससे क्या? यदि उर्वशी के स्तनयुगल का तुमने आलिंगन कर लिया, तो क्या? और यदि ब्रह्मानन्द-अमृत का भी भली प्रकार आस्वादन तुम्हें मिले, तो भी उससे क्या फल? क्योंकि श्रीवृन्दावन के तो तृण ने भी इन समस्त वस्तुओं को थुत्कार कर त्याग कर दिया है।।46।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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