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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
नित्यक्रीड़ापरायण विग्रह जो सूक्ष्म एवं हलके नीले और पीले रंग के रेशमी वस्त्र धारण कर रहे हैं, सुवर्ण एवं मरकत-मणि की ज्योति वाले तथा आश्चर्यमय लीलायुक्त आनन्द के समुद्र दोनों जिस (श्रीवृन्दावन) में अनेक प्रकार के हास्य प्रहससनादि के महाकौतुक-विनोद के द्वारा आनन्द प्राप्त कर रह हैं, उसी श्रीवृन्दावन में तू प्रीति कर।।7।।
श्रीयुगल किशोर नित्य ही मधुर से सुमधुर आश्चर्यजनक कैशोर वेश धारण करते हैं, नित्य ही एक दूसरे की शोभा और माधुरी में सन्निवेश करते हैं, नवीन नवीन नित्य अंग-संग से एक दूसरे का प्रेम नित्य ही बढ़ता है, मैं नित्य ही श्रीवृन्दावनभूमि में उस गौरश्याम जोड़ी का भजन करता हूँ।।8।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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