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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
चित्-ज्योति (वैकुण्ठादि अप्राकृत धाम) और अचित् ज्योति (प्राकृत भवन, दैवी धामादि) सबको आच्छादनकारी ज्योति वाले, एवं जिससे उज्ज्वल अनन्त ज्योति-रसामृत टपक रहा है और जो अन्य सब प्रकार के आनन्द को भुला देने वाले हैं, तथा जहाँ श्रीराधाकृष्ण महाप्रेम सुख से अगाध अनन्य विहार कर रहे हैं- ऐसे श्रीवृन्दावन में सब कुद त्याग कर तू वास कर।।5।।
जहाँ निरन्तर कन्दर्प-लीलामय सर्व आश्चर्यजनक किशोर मूर्त्ति गौरश्याम महामनोहर जोड़ी विराजमान है, जिसकी हर एक गली में मार्ज्जन और सुगन्धित जल का छिड़काव हो रहा है, जिससे मंजुल निकुंजसमूह चमक रहा है, ऐसे श्रीवृन्दावन में कब मैं अचल निवास करूँगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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