विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्यायसमं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्। जो पुरुष विशेष रूप से नष्ट होते हुए चराचर सभी भूतों में नाशरहित परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही यथार्थ देखता है। अर्थात् उस प्रकृति के विशेष रूप से नष्ट होने पर ही वह परमात्मस्वरूप है, इससे पहले नहीं। इसी पर पीछे अध्याय आठ में भी कहा, ‘भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मन्ज्ञितः।’- भूतों के भाव, जो (भले अथवा बुरे) कुछ भी (संस्कार) संरचना करते हैं,उनका मिट जाना ही कर्म की पराकाष्ठा है। उस समय कर्म पूर्ण है। वही यहाँ भी कहते हैं कि जो चराचर भूतों को नष्ट होते हुए और परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही सही देखता है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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