विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्याययावत्सन्जायते किन्चित्सत्वं स्थावरजंगमम्। हे अर्जुन! यावन्मात्र जो कुछ भी स्थावन-जंगम वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं, उन सम्पूर्ण को तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान। प्राप्ति कब होती है? इस पर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज