यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 612

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

त्रयोदश अध्याय


ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।।17।।

वह ज्ञेय ब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति है, तम से अति परे कहा जाता है। वह पूर्ण ज्ञानस्वरूप है, पूर्ण ज्ञाता है, जानने योग्य है और ज्ञान द्वारा ही प्राप्त होनेवाला है। साक्षात्कार के साथ मिलनेवाली जानकारी का नाम ज्ञान है। ऐसी जानकारी द्वारा उस ब्रह्म का प्राप्त होना सम्भव है। वह सबके हृदय में स्थित है। उसका निवास स्थान हृदय है। अन्यत्र ढूँढ़ने पर वह नहीं मिलेगा। अतः हृदय में ध्यान तथा योगाचरण द्वारा ही उस ब्रह्म की प्राप्ति का विधान है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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