विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्याय
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते। वह ज्ञेय ब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति है, तम से अति परे कहा जाता है। वह पूर्ण ज्ञानस्वरूप है, पूर्ण ज्ञाता है, जानने योग्य है और ज्ञान द्वारा ही प्राप्त होनेवाला है। साक्षात्कार के साथ मिलनेवाली जानकारी का नाम ज्ञान है। ऐसी जानकारी द्वारा उस ब्रह्म का प्राप्त होना सम्भव है। वह सबके हृदय में स्थित है। उसका निवास स्थान हृदय है। अन्यत्र ढूँढ़ने पर वह नहीं मिलेगा। अतः हृदय में ध्यान तथा योगाचरण द्वारा ही उस ब्रह्म की प्राप्ति का विधान है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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