विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दएकादश अध्यायकस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् हे महात्मन! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिये ये सब कैसे नमस्कार न करें; क्योंकि हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! सत्, असत् और उनसे भी परे अक्षर अर्थात् अक्षय स्वरूप आप ही हैं। अर्जुन ने अक्षय स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन किया था। केवल बौद्धिक स्तर पर कल्पना करने या मान लेने मात्र से कोई ऐसी स्थिति नहीं मिलती, जो अक्षय हो। अर्जुन का प्रत्यक्ष दर्शन उसकी आन्तरिक अनुभूति है। उसने सविनय कहा-
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज