यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्ददशम अध्याय
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। मैं सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ, मुझसे ही सम्पूर्ण जगत् चेष्टा करता है- इस प्रकार मानकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त विवेकीजन मेरा निरन्तर भजन करते हैं। तात्पर्य यह है कि योगी द्वारा मेरे अनुरूप जो प्रवृत्ति होती है, उसे मैं ही किया करता हूँ। वह मेरा ही प्रसाद है। (कैसे है? इसे पीछे स्थान-स्थान पर बताया जा चुका है।) वे निरन्तर भजन किस प्रकार करते हैं? इस पर कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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