विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायप्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्। जिसका मन पूर्णरूपेण शान्त है, जो पाप से रहित है, जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ऐसे ब्रह्म से एकीभूत योगी को सर्वोत्तम आनन्द प्राप्त होता है, जिससे उत्तम कुछ भी नहीं है। इसी पर पुनः बल देते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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